वो ही बताएगा: नज़्म
मुझे कब क्या है सुनना ये वो ही बताएगा
सच उसमें हो कितना, ये वो ही बताएगा
मैं कितना अकलमंद हूँ मैं ये भूल ही गया
मुझमें दिमाग है कितना, ये वो ही बताएगा
सुबह से शाम तक जो दिखे वो देखते रहो
किसमें है फायदा कितना, ये वो ही बताएगा
कुछ गलत अगर लगे तो तुम बोलना नहीं
बोले वो गद्दार है कितना, ये वो ही बताएगा
ये पागलों का हुजूम क्यों सड़कों पे आ गया
दर्द में बोलना है कितना, ये वो ही बताएगा
सुर में सुर मिला सको तभी बोलना सनम
तेरा है ये दरबार कितना, ये वो ही बताएगा
किस बात पर होगी बात ये तुझे क्या पता
बोलेगा पर कौन कितना, ये वो ही बताएगा
© जितेन्द्र नाथ
No comments:
Post a Comment