तेरे शहर में (एक नज़्म)
हर तरफ भीड़ है बहुत तेरे शहर में
सभी कशमकश में हैं तेरे शहर में
ना उम्र थम रही है, ना ख्वाब रुक रहे
सब कुछ चल रहा है अब तेरे शहर में
न रास्ता पता है, न मंजिल की है खबर
फिर भी रहे हैं दौड़ सब तेरे शहर में
पंछी को चैन अब मिलता नहीं यहां
बचा नहीं दरख़्त कोई तेरे शहर में
बड़े दिनों के बाद मिलने को मन हुआ
कर्फ़्यू लगा हुआ है पर तेरे शहर में
आई है मां घर तेरे बड़े दिनों के बाद
नौकर की कमी है शायद तेरे शहर में
सारे मकान यहां पर महलों को मात दे
साबुत बचा नहीं है घर कोइ तेरे शहर में
रोशनी से रातों को रोशन बहुत किया
फिर भी अंधेरा है बहुत तेरे शहर में
बगावती सुर यहां चुपचाप से हो गए
परचम भी परेशान है अब तेरे शहर में
©© जितेन्द्र नाथ
तेरे शहर में |
आईना: काव्य संग्रह |
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