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Tuesday, August 2, 2022

शिकायत : एक नज़्म : जितेन्द्र नाथ

        शिकायत

वो मिल गया मुझे, जो मुझमें ही गुम था ।

शिकायत थी उसे, हम कभी मिले ही नहीं ।।


सच की राह में दुश्वारियों का सबको गिला रहा

जिन्हें शिकायत थी, वो उस पर कभी चले ही नहीं ।।


परवरदिगार को कोसते हैं वो ही चंद लोग

जो जिंदगी में उसकी राह में कभी चले ही नहीं ।।


मेरी गलतियों का उनके पास पूरा हिसाब था

जो जिन्दगी में मुझसे कभी मिले ही नहीं।।


बैठोगे तन्हाई में तो तुम्हें सब याद आएगा

मोहब्बत भी है दरमियाँ, सिर्फ गिले ही नहीं।।


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                © जितेंद्र नाथ



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