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दृष्टि : एक नज़्म मैं गिलास, कभी खाली कभी भरा, देखता हूँ आदत है, झूठ के नीचे दबा सच देखता हूँ।। जिसकी आँखों में सब डूबने की बात करते हैं मैं ...
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वो मुझको तन्हा रोता मिला हर इंसान उसे सोता मिला मैंने पूछा कि कौन हो तुम वो बोला तुम्हारा वजूद हूँ मैं तुम मिट जाओगे इस तरह सिमट जाऊँगा मैं...
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शिद्दत: एक नज़्म मैं इस मोड़ से उस मोड़ तक भागता ही रहा मेरी आंखों में नींद थी मगर जागता ही रहा ख्वाब किसी परछाईं की तरह आते जाते रहे मैं उनकी...
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आईना: काव्य संग्रह लेखक: जितेन्द्र नाथ प्रकाशन: समदर्शी प्रकाशन, मेरठ समीक्षा: श्री देव दत्त 'देव' आईना: जितेन्द्रनाथ "मुक्त छं...
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सफ़र: एक नज़्म सदियों से ठहरा हूँ पर मैं सफर में हूँ दरिया हूँ, रुक कर भी मैं सफर में हूँ।। शोखियाँ तितलियों की अदाओं में हैं मैं इश्क ठहरा, उ...
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वो ही बताएगा: नज़्म मुझे कब क्या है सुनना ये वो ही बताएगा सच उसमें हो कितना, ये वो ही बताएगा मैं कितना अकलमंद हूँ मैं ये भूल ही गया मुझमें दि...
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माँ - एक कविता (अमर शहीद विक्रम बत्रा को समर्पित) तीन रंग की चूनर लेकर मुझको आज सुला दे माँ, जो करना था, कर आया अब मेरी थकान मिटा दे म...
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कागज़, कलम और शिक्षक चिराग जैसे जल रहे निरन्तर देने को तुम्हें प्रकाश घटे अंधेरा बढ़े उजाला यह हर शिक्षक का प्रयास।। जो नहीं साक्षर, वो बने सा...
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तेरे शहर में (एक नज़्म) हर तरफ भीड़ है बहुत तेरे शहर में सभी कशमकश में हैं तेरे शहर में ना उम्र थम रही है, ना ख्वाब रुक रहे सब कुछ चल रहा है...
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सवाल तेरे सवाल का जवाब मिले तो मिले कैसे मेरे जवाब से कुछ लोग बेनकाब होते हैं।। किस किस को तू यहाँ आजमा कर देखेगा इस जहाँ में नकाब के पीछ...
Wednesday, January 26, 2022
सफर में हूँ
Monday, January 17, 2022
शिद्दत
शिद्दत: एक नज़्म
मैं इस मोड़ से उस मोड़ तक भागता ही रहा
मेरी आंखों में नींद थी मगर जागता ही रहा
ख्वाब किसी परछाईं की तरह आते जाते रहे
मैं उनकी ताबीर के लिए बस भागता ही रहा
कुछ मंजिलें आई राह में, कुछ दूर चली गई
मैं उन तक जाती सड़कों को नापता ही रहा
जो भी मिला उससे मैं दिल खोलकर मिला
मगर दिल में उसके क्या था मैं भांपता ही रहा
मेरे अपने हरपल मुझे मेरी जगह दिखाते रहे
मैं उन रिश्तों को खामोशी से ढापता ही रहा
लादे फिरता था जो बच्चों को अपनी पीठ पर
बुढ़ापे में वो शख्स अकेला खांसता ही रहा
उसके खेतों में उगी कपास से थान बन गए
मगर उस बदनसीब का बदन कांपता ही रहा
©जितेन्द्र नाथ
Sunday, October 31, 2021
दृष्टि
दृष्टि : एक नज़्म
मैं गिलास, कभी खाली कभी भरा, देखता हूँ
आदत है, झूठ के नीचे दबा सच देखता हूँ।।
जिसकी आँखों में सब डूबने की बात करते हैं
मैं उसके आँसुओ में दबी कसक देखता हूँ।।
उसकी बेबसी को तुम कभी हार मत समझना
मैं उसकी आँखों में जीत की चमक देखता हूँ।।
जो बुरा वक्त चला गया उसे तुम भूलना नहीं
मैं खुशी के बाद आती उसकी धमक देखता हूँ।।
जो मिल गया मुझे, क्या यही मेरी मंजिल है
मैं यहाँ से जाती हुई लम्बी सड़क देखता हूँ।।
ये लोग न जाने क्यों उसकी हंसी के कायल है
मैं जब देखता हूँ, उन आँखों में हवस देखता हूँ।।
© जितेन्द्र नाथ
The Railway Men: Poetry of Pain
द रेलवे मैन : सत्य घटनाओं पर आधारित दारुण कथा ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● भारत में वेब सीरीज की जमीन गाली गलौज की दुनिया से आगे बढ़ कर अपने ल...
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शिद्दत: एक नज़्म मैं इस मोड़ से उस मोड़ तक भागता ही रहा मेरी आंखों में नींद थी मगर जागता ही रहा ख्वाब किसी परछाईं की तरह आते जाते रहे मैं उनकी...
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दृष्टि : एक नज़्म मैं गिलास, कभी खाली कभी भरा, देखता हूँ आदत है, झूठ के नीचे दबा सच देखता हूँ।। जिसकी आँखों में सब डूबने की बात करते हैं मैं ...
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वो मुझको तन्हा रोता मिला हर इंसान उसे सोता मिला मैंने पूछा कि कौन हो तुम वो बोला तुम्हारा वजूद हूँ मैं तुम मिट जाओगे इस तरह सिमट जाऊँगा मैं...